Saturday, October 27, 2012



आज रेश्मा स्कूल से जल्दी घर के लिए रवाना हो गई। इन दिनों स्कूल में वार्षिकोत्सव की तैयारियाँ चल रही हैं। दसवीं कक्षा की छात्रा रेश्मा विद्यालय के सभी सांस्कृतिक कार्यक्रमों में नियमित रूप से भाग लेती है।इस बार वह नाटक में एक मुख्य पात्र की किरदारी अदा करने जा रही जा रही है।आज नाटक की प्राक्टीस न होने के कारण रेश्मा को जल्दी घर जाने की इज़ाजत मिल गई।

  • रेश्मा के उस दिन की डायरी लिखें।

तारीख


आज नाटक की प्राक्टीस नहीं थी।जल्दी घर पहूँची।
घर का दृश्य देखकर स्तब्ध रह गई।
मोहल्ले की अधिकाँश महिलाएँ घर में।
महिलाओं का मेला जैसा लगा। कमरे में पूजा-पाठ कर रहा था, एक साधु।बुआ की संतान-प्राप्ति के लिए।कैसी विडंबना है ?
संतान-प्राप्ति के लिए पूजा -पाठ ! मेरे लिए यह सह्य नहीं था।सूधा के भैया श्रीकांत को बुलवाया।फिर क्या था.........
बहूत मजाक की बात हुई। ढोंगी साधु जान लेकर भागे।भैया ने उसके बास पकड़ने की कोशिश की।
बाबाजी की जटा भैया के हाथ में ..
बहूत मज़ा आया।





रेश्मा ने अपनी खास सहेली सुधा को फोण किया और सारी बातें एक साँस में कह दी।फोण में रेश्मा और सुधा की बातचित कलपना करके लिखें।
सुधा - नमस्ते, मैं सुधा,कौन बोल रहे हैं ?
रेश्मा - मैं रेश्मा ।
सुधा - हाय , रेश्मा तुम ? क्या बात है री.....
रेश्मा - सुधा,अब खुशहाल पूछने का वक्त नहीं है।मैं बड़ी मुसीबत में पड़ गई हुँ।
सुधा - क्या …? मुसीबत में ? घबराओ नहीं।बोलो ।
रेश्मा - मेरी बुआ ….उसे तुम जानती हो न ? वह माँ बनने की इच्छा में अनुष्ठान करवा रही है।घर में महिलाओं की भीड़ जमी है।
सुधा - पुत्र-प्राप्ति के लिए अनुष्ठान …? कौन है वह सिद्ध पुरूष?
रेश्मा - उसे तुम भली-भांति जानती हो ।नागर के वह सादु-बाबा।
सुधा - ओह ! मोहिनी बाबा ! बुआ उसके जाल में फँस गई क्या ?
रेश्मा - हाँ किसी न किसी तरह उनसे बुआ की रक्षा कीजिए।
सुधा - तुम घबराओ मत यार । मैं श्रीकाँत भैया को को अभी भेज रही हुँ।
रेश्मा -अच्छा ,जल्दी भेजना । बाद मैं बुलाऊँ ।...
सुधा - ठीक है।



रपट
बाबा का पोल खुल गया
मुंबई : रेश्मा नामक एक बालिका ने अपने विवेक से उसकी बुआ को कपट बाबा से बचाया । रेश्मा की बुआ पंद्रह साल से नि: संतान थी।पुत्र-प्राप्ति की लालसा देकर नगर के प्रसिद्ध साधु बाबा ने उसे अपने जाल में फँसाया।बीस हज़ार रुपए और सोना अनुष्ठान के लिए माँगे थे।कल दूपहर को रेश्मा ने अपनी सहेली सुधा को फोन पर बुलाया।सुधा का भाई श्रीकाँत अपने साथी के साथ वहाँ पहूँचे ।श्रीकाँत को देखकर बाबा अपनी दूकान समेटने लगा। श्रीकाँत का का साथी बाबा की जटा खींचने लगा तो जटा उसके हाथ में आ गई।

स्थान
तारीख
आदरणीय माँजी ,
आप कैसी है ? घर में सब कुशल है न ? यहाँ सब कुशलपूर्वक है। पिताजी क्या कर रहे हैं ?
माँ ,जैसे मैं ने बताया था, कबरी बिल्ली से मैं बहूत परेशान हुँ।वह रसोई घर में घुसकर बहूत अधिक तंग कर रही है।
दूध,घी,मलाई कुछ भी रख नही सकती।वह सब कुछ ले लेती है।मैं कठघरा खरीदकर उसे फँसाने की सोच रही हुँ।
नानी को प्रणाम कहना ।भाई को प्यार ।
तुम्हारी बेटी
नाम
कबीरदास
(तेरा साई तुझ में)


पाहन पूजै हरि मिलै,तो मैं पूजुँ पहार ।
ताते या चाकि भलि , पीस खाय संसार ।।
पाहन -– पत्थर
पूजै - पूजा करने से
हरि - ईश्वर
मिलै - मिलना
पूजूँ - पूजा करूँ
पहार – पर्वत
ताते - उससे
चाकि - चक्की
भलि - अच्छी
पीस – पीसना
खाय – खाता है।

इस दोहे में मूर्ति-पूजा का विरोध करते हुए कबीरदास कहते है-
पत्थर की पूजा करने से यदि ईश्वर मिल सकते तो मैं पहाड़ की पूजा करूँ ।उससे अच्छा है चक्की की पूजा करना । क्योंकि
उससे अच्छा है चक्की की पूजा करना । क्योंकि उसमें धान्य पीसकर संसार के लोग खाते है।
കബീര്‍ ദാസ് പറയുന്നു- കല്ല് പൂജിച്ചാല്‍ ദൈവത്തിനെ കാണാമെങ്കില്‍ ഞാന്‍ പര്‍വ്വതത്തെ പൂജിക്കാന്‍ തയ്യാറാണ്.
അതിനേക്കാള്‍ നല്ലത് അരക്കല്ലിനെ പൂജിക്കുന്നതാണ്.അതുകൊണ്ട് അരക്കാനെന്തെങ്കിലും സാധിക്കും.


मुड मुड़ाए हरि मिलै , सब कोई लेय मुड़ाय।
बार-बार के मुँड़ते ,भेड़ न वैकुंड़ जाय ।

मुँड़ - सिर
मुड़ाए- मुँड़न करे
लेय -– लेता है
मुँडते - मुँड़न करने पर भी
भेड़ - sheep
- नहीं
जाय –- जाते है
എല്ലാവരും ഈശ്വരസാക്ഷാത്കാരത്തിനു വേണ്ടി തല മുണ്ഡനം ചെയ്യുന്നു.എന്നാല്‍ ശരീരത്തിലെ മുഴുവന്‍ രോമങ്ങളും
മുറിക്കുന്ന ചെമ്മരിയാട് വൈകുണ്ഡത്തിലേയ്ക്ക് എന്തുകൊണ്ടെത്തുന്നില്ല.


तेरा साई तुझ में , ज्यों पुहुपन में बास ।
कस्तूरी का मिरग ज्यों , फिरि फिरि ढूँढे़ घास ।।
तेरा - നിന്റെ
साई -स्वामी
तुझ में - നിന്നില്‍
ज्यों - जिस प्रकार
पुहुपन -– पुष्प
बास – सुगंध
मिरग – मृग
कस्तूरी का मिरग -– कस्तूरी मृग
फिरि फिरि - बार-बार
ढूँढे - खोजता है
घास – grass
ഒരു പുഷ്പത്തില്‍ സുഗന്ധമുളളതു പോലെ നിന്റെ ഈശ്വരന്‍
നിന്നില്‍ തന്നെയുണ്ട്.അത് മനസ്സിലാക്കാത്ത ജനങ്ങള്‍ കസ്തൂരിമാന്‍ കസ്തൂരി അന്വേഷിക്കുന്നതു പോലെ ഈശ്വരനേയും
അന്വേഷിച്ച് പല സ്ഥലങ്ങളിലും അലയുകയാണ്.
इस दोहे के द्वारा कबीर एक श्रेष्ठ तत्व को व्यक्त
करते हैं। सारी सृष्ठी में अदृश्य रूप में ईश्वर रहते है।उनको बाहर खोजने की ज़रूरत नहीं। अंदर ही देखना है । किंतु
कोई उसे देख नहीं पाता । ईश्वर की शक्तिमात्र समझ लेना
ही काफ़ी है। ईश्वर की सर्वव्यापकता यहाँ व्यक्त की गई है।