Saturday, October 27, 2012


तारीख


आज नाटक की प्राक्टीस नहीं थी।जल्दी घर पहूँची।
घर का दृश्य देखकर स्तब्ध रह गई।
मोहल्ले की अधिकाँश महिलाएँ घर में।
महिलाओं का मेला जैसा लगा। कमरे में पूजा-पाठ कर रहा था, एक साधु।बुआ की संतान-प्राप्ति के लिए।कैसी विडंबना है ?
संतान-प्राप्ति के लिए पूजा -पाठ ! मेरे लिए यह सह्य नहीं था।सूधा के भैया श्रीकांत को बुलवाया।फिर क्या था.........
बहूत मजाक की बात हुई। ढोंगी साधु जान लेकर भागे।भैया ने उसके बास पकड़ने की कोशिश की।
बाबाजी की जटा भैया के हाथ में ..
बहूत मज़ा आया।




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